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इंटरमीडिएट परीक्षार्थियों के लिए हिंदी में महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर इंटर बोर्ड परीक्षा।

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इंटरमीडिएट परीक्षार्थियों

इंटरमीडिएट परीक्षार्थियों के लिए हिंदी में महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर इंटर बोर्ड परीक्षा।

1. किसी एक विषय पर निबंध लिखें

(क) मेरे प्रिय कवि         (ख) छात्र और राजनीति

(ग) वसंत ऋतु              (घ) विज्ञान वरदान या अभिशाप

2. अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें वर्त्तमान बिहार के विकास की दशा और दिशा का वर्णन कीजिए।

अथवा, स्थानीय समाचार पत्र के माध्यम से अपने शिक्षा मंत्री का ध्यान परीक्षा में होनेवाली अनिमितताओं की ओर आकृष्ट करें।

3. ( क ) किन्दीं पाँच के संधि-विच्छेद करें।

पावक, भावुक, नदीश, व्यर्थ, संतोष, दुर्जय, संस्कृत, हिमालय।

(ख) किन्हीं पाँच के विग्रह कर समास बताइए : युधिष्ठिर, चौराहा, पुरुषोत्तम, गौरीशंकर, दिनानुदिन, लम्बोदर,आजन्म, राजकन्या।

(ग) वाक्य प्रयोग द्वारा किन्हीं पाँच के लिंग-निर्णय करें

चाय, परीक्षा, भेंट, पीतल, याचना, रात, बादल, बर्फ।

(घ) किन्हीं पाँच के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें :

चन्द्रमा, हाथी, कमल, नारी, समुद्र, पत्नी, रात,

(ङ ) संधि और समास में अंतर स्पष्ट करें। नर।

(च) किन्हीं पाँच मुहावरों के वाक्य प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट करें :

(i) अंधे की लकड़ी होना     (iii) दाल न गलना

(v) मुट्ठी गरम करना          (vii) खाक छानना

4. . सही जोड़े का मिलान करें:

(i) जूठन (ii) घड़ों पानी पड़ना (iv) पट्टी पढ़ाना

(vi) नाक का बाल होना (viii) कलेजा फटना

(क) ओमप्रकाश वाल्मीकि तुमुल कोलाहल कलह में

(ख) जयशंकर प्रसाद       (ग) चन्द्रधर शर्मा गुलेरी दिनकर          (घ) रामशेर बहादुर सिंह

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

(क) भूषण बितुंड पर जैसे है। (गजराज / मृगराज)

(ख) स्वप्न स्वप्न में गूँज सत्य की, पुरुष पुरुष में (नारी / क्यारी)

(ग) बोधा सिंह के पिता का नाम है। (लहना सिंह / बजीरा सिंह)

(घ) प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से अपने वृक्ष को देखती है। (ममता / लता)

(ङ) भितिहरवा आश्रम विद्यालय के शिक्षक थे। (पुंडलीकजी /पुंडरिकजी)

III. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में सही उत्तर चुनें:

(i) ‘ओ सदानीरा’ शीर्षक पाठ के लेखक है

(क) मोहन राकेश (ख) उदय प्रकाश

(ग) जगदीशचन्द्र माथुर (घ) नामवर सिंह

(ii) ‘एक लेख और एक पत्र’ के लेखक हैं

(क) सुखदेव (ख) भगत सिंह

(ग) बालकृष्ण भट्ट (घ) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।

(iii) ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचना है

(क) रोज (ख) तिरिछ

(ग) जूठन (घ) उसने कहा था।

(iv) ‘अधिनायक’ कविता के कवि है।

(क) रघुवीर सहाय (ख) गजानन माधव मुक्तिबोध

(घ) तुलसीदास (ग) भूषण

(v) ‘पुत्र वियोग’ कविता के कवि है

(क) ज्ञानेन्द्रपति (ख) जयशंकर प्रसाद

(ग) सुभद्रा कुमारी चौहान (घ) सूरदास।

5. निम्नलिखित दो दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर दें :

(क) ‘रोज’ कहानी का सारांश लिखें : अथवा, ‘ओ सदानीरा’ पाठ में आए नौका विहार प्रसंग का वर्णन करें।

(ख) ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ कविता का भावार्थ लिखें। अथवा, नारी तो हम हूँ करी, तब ना किया विचार । जब जानी तब परिहरि, नारी महा विकार ।।

उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ लिखें।

6. निम्नलिखित लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें :

(क) पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब यह क्या बन जाता है ?

(ख) विद्यार्थियों को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए ?

(ग) गाँधी जी के शिक्षा संबंधी आदर्श क्या थे ?

(घ) डायरी का लिखा जाना क्यों मुश्किल है ?

(ङ) पुत्र को छौना कहने में क्या भाव छिपा है ? उद्घाटित करें।

(च) ‘जन-जन का चेहरा एक’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?

इंटरमीडिएट परीक्षार्थियों

7. 19वीं शती से पूर्व खड़ी बोली हिन्दी के विकास पर प्रकाश डालें। अथवा, छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख करें।

8. सप्रसंग व्याख्या करें।

(क) “आदमी यथार्थ को जीता ही नहीं, यथार्थ को रचता भी है।” अथवा,” जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है। “

(ख) एक नैन जस दरपन और तेहि निरमल भाउ । सब रूपवंत गहि मुख जोवहिं कई चाउ || अथवा, दुनिया के हिस्सों में चारों ओर जन-जन का युद्ध एक।

9. संक्षेपण करें : युवा वर्ग का मस्तिष्क नई-नई बातों की ओर ज्यादा तेज दौड़ता है। उसमें अन्य वर्ग के व्यक्तियों से अधिक आवेश और शक्ति होता है। इस अवस्था में यदि सही शिक्षा और उचित मार्गदर्शन न मिले तो यही शक्ति और प्रेरणा निर्माण के स्थान पर विनाश की ओर ले जाती है। बिगड़ते और बनने की भी यही आयु होती है। दुर्भाग्य से हमारे देश में शिक्षा पद्धति केवल उपाधि बाँटने का काम ही करती है, एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व वाला मनुष्य बनाना आज की शिक्षा-पद्धति के लिए मुश्किल है।

भारत में सभी ऋतुओं का दर्शन और अनुभव होता है। ऋतुराज वसन्त की बात ही अलग है । वसन्त ऋतु के विषय में विद्वानों का कहना है कि ” वसन्त आता नहीं लाया जाता है” ।

यहाँ वसन्त से तात्पर्य मुस्कुराहट, यौवन, मस्ती आदि से है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस ऋतु में मानव, पशु-पक्षी, वनस्पति सभी प्रफुल्ल रहते हैं। यह ऋतु अपनी विशेषताओं के कारण सभी का प्यारा है। फल्गुन से वैशाख तक यह ऋतु अपने स्वाभाविक गुणों से सभी को आनन्दित करती है। यह ऋतु अंग्रेजी महीनों के मार्च एवं अप्रैल में होती है। वसन्त पंचमी का त्यौहार तो इसी के नाम पर है लेकिन यह पहले ही सम्पन्न हो जाता है। होली का त्यौहार इसी में आता है। वसन्त ऋतु में न अधिक ठंड होती है और न अधिक गर्मी । इस ऋतु में प्रायः आकाश साफ रहता है। इसमें दिन बड़ा होता है और रात छोटी । वन-उपवन में चारों ओर नई-नई कोपलें ही दिखाई पड़ती हैं। वृक्ष, पौधे आदि सभी एक-दूसरे को प्रफुल्लित करते रहते हैं नए-नए फूल चारों ओर दिखाई पड़ते हैं। उनके मधुर रस का पान करके भौर, तितलियाँ आदि सभी मतवाले होकर इधर-उधर घूमते रहते हैं। आम्रमंजरियाँ भी अपनी गंध से सभी को मादक बना देती हैं। इस ऋतु में ही कोयल की आवाज इधर-उधर गूँजती रहती है। इस ऋतु में मानव के साथ-साथ वनस्पतियाँ भी प्रसन्न हो जाती हैं ।

उन पर नए फूल और फल वातावरण को और भी सुन्दर बना देते हैं। नाना प्रकार के फल मिलते हैं जिसको खाकर मनुष्य नई चेतना को प्राप्त करते हैं। उनका शरीर भी खिल उठता है। सभी प्राणी और वनस्पतियाँ आनन्द के सागर में हिलोरें लेने लगते हैं। ठंड से राहत मिलते ही सभी जल और जलाशय का आनन्द लेने के लिए मचल उठते हैं। होली का त्यौहार भी यह प्रदर्श करता है कि ठंडक चली गयी है और स्नान से घबराना नहीं है। इस ऋतु में ही रबी फसल कटती है जो मानव जीवन का आधार है। वसन्त ऋतु में प्रायः भ्रमण का अलग महत्त्व है । वसन्त ऋतु में चारों

और मनमोहक वातावरण में सैर करने से शरीर के साथ-साथ मन भी प्रसन्न होता है। इसे ऋतु का स्वास्थ्यवर्धक ऋतु मानी गई है। कहा गया है कि इस ऋतु में नियमपूर्वक रहने से रोग इत्यादि दूर रहते हैं। यह ऋतु छात्रों के लिए भी उपयोगी है, क्योंकि वातावरण स्वच्छ रहने से भरपूर पढ़ाई होती है। अन्त में, यह कह सकते हैं कि विद्वानों का यह कथन कि वसन्त आता नहीं लाया जाता है, सही होते हुए भी वसन्त ऋतु एक अलग रूप प्रस्तुत करता है अर्थात्, इस ऋतु की इतनी विशेषताएँ है कि आनन्द, मस्ती, प्रफुल्लित मन, सुन्दर और स्वच्छ वातावरण ही वसन्त का पर्याय हो गया है। (घ) विज्ञान वरदान या अभिशाप

विज्ञान के दो रूप विज्ञान एक शक्ति है, जो नित नए आविष्कार करती है। यह शक्ति न तो अच्छी है, न बुरी। अगर हम उस शक्ति से मानव-कल्याण के कार्य करें तो वह ‘वरदान’ प्रतीत होती है। अगर उसी से विनाश करना शुरू कर दें तो वह ‘अभिशाप’ बन जाती है।

विज्ञान ‘वरदान’ के रूप में विज्ञान ने अंधों को आँखें दी हैं, बहते को सुनने की ताकत । लाइलाज रोगों की रोकथाम की है तथा अकाल मृत्यु पर विजय पाई है । विज्ञान की सहायता से यह युग बटन-युग बन गया 1 बटन दबाते ही वायु देवता हमारी सेवा करने लगते हैं, इंद्र देवता वर्षा करने लगते हैं, कहीं प्रकाश जगमगाने लगता है तो कहीं शीत-उष्ण वायु के झोंके सुख पहुँचाने लगते हैं। बस गाड़ी, वायुयान आदि ने स्थान की दूरी को बाँध दिया है। टेलीफोन द्वारा तो हम सारी वसुधा से बातचीत करके उसे वास्तव में कुटुंब बना लेते हैं। हमने समुद्र की गहराइयाँ भी नाप डाली हैं और आकाश की ऊँचाइयाँ भी । हमारे टी.वी., रेडियो, वीडियो में मनोरंजन के सभी साधन तु कैद हैं। सचमुच विज्ञान ‘वरदान’ ही तो है।

विज्ञान ‘अभिशाप’ के रूप में मनुष्य ने जहाँ विज्ञान से सुख के साधन जुटाए हैं, वहाँ दुख के अंबार भी खड़े कर लिये हैं। विज्ञान के द्वारा हमने अणु बम, परमाणु बम तथा अन्य ध्वंसकारी शस्त्र अस्त्रों का निर्माण कर लिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब दुनिया में इतनी विनाशकारी सामग्री इकट्ठी हो चुकी है कि उससे सारी पृथ्वी को अनेक बार नष्ट किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रदूषण की समस्या बहुत बुरी तरह फैल गई। है । नित्य नए असाध्य रोग पैदा होते जा रहे हैं, जो वैज्ञानिक उपकरणों के अंधाधुंध प्रयोग करने के दुष्परिणाम हैं। वैज्ञानिक प्रगति का सबसे बड़ा दुष्परिणाम मानव-मन पर हुआ जो मानव निष्कपट था, निस्वार्थ था, भोला था, मस्त और बेपरवाह था, वह है। पहले अब छली, स्वार्थी, चालाक, भौतिकतावादी तथा तनावग्रस्त हो गया है। उसके जीवन में से संगीत गायब हो गया है, धन की प्यास जाग गई है । नैतिक मूल्य नष्ट हो गए हैं।

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