इंटर महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर इंटरमीडिएट परीक्षार्थियों के लिए प्रश्न उत्तर हिंदी में।
1. सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय एम. के. एस कॉलेज, दरभंगा
विषय : शिक्षण शुल्क (किस) माफ करने हेतु आवेदन पत्र महाशय,
सविनय निवेदन है कि मैं बारहवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ। मैं एक निर्धन परिवार से संबंध रखता हूँ। मेरे पिताजी इतना कम पैसा कमाते हैं कि किसी तरह हमें दो वक्त का भोजन मिल पाता है। वे मेरी पढ़ाई-लिखाई का खर्च नहीं उठा सकते हैं ।
अतः मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरा शिक्षण शुल्क माफ करने की कृपा करें, जिसके लिए मैं आपका जीवन भर अभारी रहूँगा और कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगा ।
धन्यवाद
दिनांक – 4 मई, 2015
आपका आज्ञाकारी छात्र
रोहित कुमार,
वर्ग-XII(A) क्रमांक- 75,
हसन चौक (दरभंगा)
अथवा,
प्रेषक : नरेन्द्र प्रसाद
छात्र, इंटर (वाणिज्य)
कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना
सेवा में,
मुख्यमंत्री, बिहार सरकार पटना सचिवालय, पटना
विषय : गाँव की समस्या (बाढ़) से निजात पाने हेतु
महाशय,
मैं विनम्रतापूर्वक आपका ध्यान बिहार की बाढ़-समस्या की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ ताकि बिहार के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के नागरिकों को कुछ राहत मिल सके।
बिहार की नदियों में अक्सर बाढ़ आ जाया करती है। पूरा उत्तर बिहार बाढ़ के पानी से डूबा रहता है। फसलें डूबकर नष्ट हो जाती हैं। शहरी क्षेत्र पानी में डूब जाते हैं। आवागमन की समस्या खड़ी हो जाती है। माल-मवेशी पानी में बह जाते हैं। बाढ़ के बाद महामारी फैल जाती है।
अतः महानुभाव से निवेदन है कि बिहार को बाढ़ की समस्या से निजात दिलाने के लिए एक मास्टर प्लान बनवाकर काम प्रारम्भ करें। आवश्यक एवं उपयोगी हो तो नदियों को आपस में जोड़ दिया जाय।ऐसा करने से बाढ़ की समस्या हल हो जाएगी।
आपका विश्वासी
नरेन्द्र प्रसाद एवं बिहार के अन्य नागरिक
दिनांक : 25 मई 2015
2. सामाजिक हिंसा-सामाजिक हिंसा न वरन राजनीति में बल्कि सामाजिक संबंधों में भी फैलती जा रही है परिणामस्वरूप हमारे समाज क महिलाओं के साथ-साथ तमाम कामगार आदिवासी छोटे किसान और मजदूर जगह-जगह इस हिंसा का शिकार हो रहे है। इससे प्रतीत होता है कि हमारा भविष्य अंधकारमय है।
3. 1. (क) (iv), (ख) (ii), (ग) (iii), (घ) (v), (ङ) (iv) II. (i) (क), (ii) (घ), (iii) (क), (iv) (घ), (v) (घ)
III. (क) धैर्य, (ख) आग, (ग) कष्ट सहकर, (घ) क्रोध, (ङ)
4. (क) चुनाव प्रक्रिया- देखें 2015 प्रश्न संख्या
6 (ख) का उत्तर । (ख) मोबाइल- आजकल मोबाइल फोन हमारे जीवन में प्रमुख भूमिका निभाता है। आम तौर पर, मोबाइल फोन दैनिक जीवन में संचार का सबसे तेज साधन माना जता है, हम अपने दोस्तों के साथ आसानी से संपर्क या संदेश हमारे रिश्तेदार जहाँ भी हो उनसे हम तुरंत संपर्क कर सकते हैं। दूसरा, मोबाइल फोन भी लोगों के लिए मनोरंजन का एक साधन है। हम संगीत सुनने के लिए और मोबाइल फोन पर गेम खेल सकते हैं। इसके अलावा smarthphones के लिए नवीनतम Apps का उपयोग करके, हम इंटरनेट का उपयोग करने के लिए फिल्म देखने के लिए और सामाजिक नेटवर्क में हमारे प्रोफाइल की जाँच करें और हमारी स्थिति को अद्यतन हम जहाँ भी हो सकता है। फाइनल में हम हाथ में एक स्मार्टफोन हैं, तो हमारे शब्दकोश का अध्ययन जानकारी देख सकते हैं, जो इंटरनेट के अध्ययन के लिए उपयोगी है पर संदर्भ के कई स्रोत का पता लगाने के रूप में इस तरह के और अधिक प्रभावी हो जाता है।
दूसरी ओर, मोबाइल फोन से कई नुकसान भी है सबसे पहले टेलीफोन उपयोगकर्ता अपने मोबाइल फोन पर निर्भर हो जाता हैं, इसके अलावा मानव संचार की क्षमता सीमित है मोबाइल फोन ऐसे वर्ग की बैठकों के रूप में कुछ घटना में ज्यादा मौजूद है, तो पार्क में बस पर कुछ लोगों को ही संवाद स्थापित करने के बिना उनके फोन पर ध्यान केंद्रित रहता है। मोबाइल फोन के इस्तेमाल बहुत ज्यादा लोगों को समय की एक बहुत दूर कर देगा, यह अध्ययन के परिणामों पर प्रभाव न केवल, छात्रों व्याकुल बनाता है, लेकिन यह आँखों के रोग का कारण है। हमें गाड़ी चलाते समय भी मोबाइल फोन का उपयोग नहीं करना चाहिए जब तक हम गाड़ी चला रहे हैं, क्योंकि यह यातायात दुर्घटनाओं का नेतृत्व कर सकते हैं।
अंत में, मोबाइल फोन आज हमारे आधुनिक जीवन के लिए आवश्यक है। हालांकि यह उपयोगी है या नहीं, जो इसे इस्तेमाल करने के हमारे तरीके पर निर्भर करता है। अगर हम इसे सही उद्देश्य के लिए और एक उचित समय में उपयोग करना बेहतर है वहीं अनुचित समय में उपयोग पर हानिकारक होगा ।
(ग) आतंकवाद देखें 2010 प्रश्न संख्या 4 (ङ) । (घ) प्रदूषण प्रदूषण का अर्थ है-प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न त वातावरण मिलना । प्रदूषण कई प्रकार का होता है। प्रमुख प्रदूषण हैं- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण।
वायु प्रदूषण- महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला हुआ है। वहाँ चौबीसों घंटे कल कारखानों का धुआँ, मोटर वाहनों का काला धुआँ इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में साँस लेना दुर्लभ हो गया है। यह समस्या वहाँ अधिक होती है जहाँ सघन आबादी होती है और वृक्षों का अभाव होता है।
जल प्रदूषण कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंध जल सब नदी-नालों में घुल-मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियाँ पैदा होती है । ध्वनि-प्रदूषण मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परंतु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर गाड़ियों की बिल्ल-पों, लाउडस्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।
प्रदूषणों के दुष्परिणाम-उपर्युक्त प्रदुषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लंबी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियाँ फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुँचकर घातक बीमारियाँ पैदा करती हैं। पर्यावरण प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है।
सूखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रयुक्त है। प्रदूषण के कारण प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखानें, वैज्ञानिक साध नों का अधिकाधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। वृक्षों को अंधाधुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है। घ आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।
प्रदूषण का निवारण – विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से बचने के लिए चाहिए कि अधिकाधिक वृक्ष लगाए जाएँ, हरियाली की मात्रा अधिक हो । सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित जल को शुद्ध करने के उपाय सोचने चाहिए।
5. (क) प्रस्तुत गद्यांवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘शिक्षा’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। यह महान चिंतक और दार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति के संभाषणों में से लिया गया एक संभाषण है। इस गद्यावतरण में महत्वाकांक्षी के चलते पैदा होनेवाली सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक विकृतियों का उल्लेख हुआ है ।
प्रस्तुत पंक्तियों के द्वारा लेखक कहना चाहते है कि महत्वाकांक्षी केवल अपने विषय में ही सोचता है, अतः वह क्रूर हो जाता है वह दूसरों को धकेलकर अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहता है। क्षुद्र संघर्ष करने में जीवन सृजनशील नहीं बनता । प्रेम के अनुभव के साथ तल्लीन होकर कोई कार्य करने से हमारी क्षुद्र महत्वाकांक्षा दबी रहती है, इस स्थिति में हमारे ह्रास की संभावना समाप्त हो जाती है। शिक्षा हमें वही कार्य करना सिखाती है जिसमें हमारी रूचि और दिलचस्पी हो । रूचि के बगैर किया गया कोई काम ऊब, ह्रास और मृत्यु प्रदान करत है। प्रेम से किए गए कार्यों से ही नूतन समाज का निर्माण संभव है। अथवा, प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य-पुस्तक दिगंत भाग-2 में संकलित ‘शिक्षा’ शीर्षक पाठ (निबंध) से उद्धत है। इसके रचयिता आधुनिक युग के महान भारतीय चिंतक एवं दार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति हैं।
उपर्युक्त गद्यांश में लेखक कहते हैं कि वैचारिक परतंत्रता और जड़ पारंपरिक मान्यताओं के वातावरण में रहकर हमने अपने में भय, घुटन और विवशता के प्रश्रय दिया है। परिणामस्वरूप, हमारे जीवन में अनेक विकृतियाँ आ गई हैं। हमारा उल्लासित जीवन विद्रूप और घिनौना हो गया है। भय, असुरक्षा तथा महत्वाकांक्षा के भाव ने सर्वत्र अशांति, संघर्ष, प्रतिस्पर्धा और हिंसा का वातावरण निर्मित कर दिया है। हमारा जीवन जो स्वाभाविक रूप से ऐश्वर्य, रहस्य और अद्भूत सौंदर्य का वरदान था, महत्वाकांक्षा के चलते अब वह अत्यन्त घिनौना हो गया है। यदि हम अपने जीवन की स्वभाविक समृद्धि, उसके रहस्यों से भरे आकर्षक संकेतों और उसके अद्भुत सौंदर्य को पुन: लौटाने की बात सोचते, तो हमें संगठित धर्म, जड़, परम्परा और सड़े हुए समाज के खिलाफ विद्रोह करना होगा। हमें सत्य और वास्तविकता की खोज करके जीवन की विकृतियों के कारणों का समूल विनाश करना होगा। विकृतियों के नष्ट होते ही हमारा जीवन नूतन सौंदर्य से हमें अनुगृहित कर देगा।